
पिपराइच विधायक महेंद्र पाल सिंह के भाई भोलेंद्र पाल सिंह की फेसबुक आईडी से एक ऐसी पोस्ट की गई जिसने पूरा सोशल मीडिया पॉलिटिकल भट्ठी बना दिया।
पोस्ट में यूपी के मुख्यमंत्री, उनके OSD और भाजपा के विधायक विपिन सिंह को निशाना बनाते हुए आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया गया।
जाति विशेष पर की गई टिप्पणी ने मानो डिजिटल जंगल में आग लगा दी। पोस्ट तो कुछ ही मिनट में डिलीट कर दी गई, लेकिन तब तक स्क्रीनशॉट सेना अपना काम कर चुकी थी।
एफआईआर का तूफान: तीन थाने एक्टिव मोड में
पोस्ट वायरल होते ही शिकायतों की झड़ी लग गई।
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साइबर थाना,
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पिपराइच थाना,
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और रामगढ़ताल थाना में FIR दर्ज कर ली गई।
सबसे पहले पुलिस मीडिया सेल के रामबोध जी ने साहस दिखाते हुए साइबर थाने में तहरीर दी। फिर आम जनता भी पीछे नहीं रही। गंगेश तिवारी और सामाजिक कार्यकर्ता संजीव त्रिपाठी भी मैदान में उतर आए।
पारिवारिक रिश्ता? ना जी, 20 साल से अनफॉलो कर रखा है!
जब बवाल बढ़ा तो विधायक महेंद्र पाल सिंह ने फौरन डिस्क्लेमर डाल दिया:

“भाई तो है, लेकिन पिछले 20 साल से फैमिली वॉट्सऐप ग्रुप में नहीं है। कानून सभी पर लागू होता है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भोलेंद्र जी अब महराजगंज के जमुनारा गांव में रहते हैं और ईंट भट्ठे का काम करते हैं — मतलब अब राजनीति से दूर, लेकिन पोस्ट से कनेक्टेड!
केदार सिंह की ज़मीन और सैंथवार समुदाय का स्मारक सपना
दरअसल विवाद की शुरुआत गोलघर स्थित स्व. केदार सिंह के आवास से हुई, जिसे प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खाली कराया।
सैंथवार समुदाय वहां स्मारक बनाना चाहता था, लेकिन प्रशासन ने “ये निजी संपत्ति है, स्मारक नहीं बन सकता” कहकर मामला टाइट कर दिया।
बस फिर क्या था, इस फैसले ने जातीय और राजनीतिक लपटों में घी डालने का काम किया।
नेता शांत, जनता ऑनलाइन एक्टिव: वायरल युग की सियासत
सवाल ये नहीं कि पोस्ट किसने किया… सवाल ये है कि डिलीट करने के बावजूद बवाल क्यों नहीं डिलीट होता?
सोशल मीडिया पर एक टाइप की गई लाइन, रियल वर्ल्ड में लाइन क्रॉस कर देती है।
राजनीति अब न सिर्फ़ ज़मीन पर, बल्कि फेसबुक की दीवार पर भी लड़ी जा रही है। जहाँ एक पोस्ट, एक स्क्रीनशॉट और एक वायरल ट्रेंड किसी का राजनीतिक करियर हिला सकता है — वहां जिम्मेदारी की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा है।
इसराइली हमले में यमन के हूती प्रधानमंत्री अहमद अल-रहावी की मौत
